“बचपन”

कोई लादे मुझे फिरसे हसी बचपन मेरा,
के जो कहता था चलो खेले वो आंगन मेरा।
थे भाइयों से वो झगड़े थी जिनमे सिर्फ मोहब्बत
बहुत याद आता है मुझको वो लड़कपन मेरा ।
कोई लादे मुझे …………….
हर एक रात नई कोई परी आती थी,
सुनहरे बागों में झूला मुझे झुलाती थी।
बड़ा दिलकश था हसी ख्वाबो का चमन मेरा।।
कोई लादे मुझे………………
वो हाथ माँ के थे या पंखुड़ी गुलाब की थी
जब भी छूती थी महक उठता था बदन मेरा।
कोई लादे मुझे…………….
फुदकता रहता था आंगन में बे फिक्र बे परवाह
किसी खुशहाल परिंदे सा था ये मन मेरा।
कोई लादे मुझे…………
रोज़ दफ्तर से वो पापा का रात घर आना ,
सुबह की ज़िद का खिलौना भी साथ में लाना।
मेरे पापा थे ख्वाहिशात का गगन मेरा।।
कोई लादे मुझे…….
अब जवानी में वो बचपन ही मुझसे पूछता है,
क्या तुम्हें याद है तनवीर वो गुलशन मेरा ।।
(Writer Tanveer chouhan)