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13 Jul 2023 · 1 min read

हज़ारों साल

हज़ारों साल

हज़ारों साल से ये दिन, पड़ा है रात के पीछे ।
सितारों की न दौलत हो, कहीं इस बात के पीछे ॥

भला कोई तुम्हें क्यों, मोतियों के हार यूँ देगा।
कहीं गरदन न फँस जाए, किसी सौगात के पीछे ||

बरसते हैं, गरजते हैं, भरी बरसात में बादल ।
बिखरते हमने देखा है, उन्हें बरसात के पीछे ॥

तरस खाते हैं महफ़िल में, जो मेरी बदनसीबी पर ।
उन्हीं की मेहरबानी है, मेरे हालात के पीछे ॥

जो कहना मानते मेरा, फिसलने से तो बच जाते ।
तुम्हें तो पेंच दिखते हैं, मेरे जज़्बात के पीछे ॥

खुदा ख़ैरात दे उनको, मुझे ख़ैरात वे देंगे।
ये दुनिया चल रही है, इस तरह ख़ैरात के पीछे ॥

सन्नाटा गहरा है /

Language: Hindi
1 Like · 282 Views
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