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12 Jan 2024 · 1 min read

नवचेतना

सघन अंधियारी रात है,
घोर सन्नाटा साथ है।
गहरी नींद तज जाग हे युवक,
धरा पर विपदा आन भारी है।
तू अटल, तू अभेद्य, तू अंगारा,
फिर क्यों तुझमें घोर निराशा।
ले मशाल चीर इस निशा को,
हो आगमन नव ऊषा का।
बन काल कुचल पुरानी रूढ़ियों को,
जिसने बांधा पीढ़ियों को।
तू साहसी, तू निश्चयी, तू अडिग,
बन पथिक नयी राह का।
नहीं यह समर की ललकार,
नहीं यह युद्ध की पुकार ।
यह बिगुल है बदलाव की,
कर शंखनाद नव चेतना की,
कर आरंभ एक नवीन युग का।

Language: Hindi
1 Like · 288 Views
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