नहीं चाहता मैं यह

नहीं चाहता मैं यह,
कि सबसे दुश्मनी हो तुम्हारी,
और लोग लगाये तुम पर इल्जाम,
कल को मेरी वजह से।
नहीं चाहता मैं यह,
कि तुम हो बर्बादी की कगार पर,
काँटों का हार पहने हुए,
निहत्थे सैनिक की भांति,
कल को मेरी वजह से।
नहीं चाहता मैं यह,
कि टूट जाये मेरे तार,
दुनियादारी और प्रमोद से,
और करता रहूँ मैं बातें,
सिर्फ अपने कुटुम्ब की।
नहीं चाहता मैं यह,
कि कर ले तू समझौता,
कल बुराई और अपवित्रता से,
अपना घर बड़ा बनाने के लिए,
पलभर के सुख- सुकून के लिए।
नहीं चाहता मैं यह,
कि तोड़ना पड़े मुझको एक दिन,
तुमसे यह मुलाकात और प्रेम,
तुम्हारी अति महत्वकांक्षा के लिए,
किसी गलत रास्ते पर तुमको देखकर।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)