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2 Jul 2023 · 1 min read

कविता : चलते-चलते यूँ ही

चलते-चलते यूँ ही यारों, एक ख़्याल मन में आया है।
खुलके जी लूँ यहाँ ज़िंदगी, ये धूप-छाँव-सी माया है।।

भौतिकता एक छलावा है, क्यों करते लोग दिखावा हैं?
मुझको भी तो ये भाया था, नहीं मगर अब ये भाया है।।

दूर रहूँ मैं अनजाना बन, कभी मुझे ये गँवारा नहीं।
इसी मूर्खता पर चुपके से, रब भी कहीं मुस्क़राया है।।

चैन मिले तब समझूँ ख़ुद को, भटकूँ पागल कहलाऊँ मैं।
सत्य जगत् का छलता आया, झूठे जग ने भरमाया है।।

‘प्रीतम’ तेरा प्रेम मिला जब, छल बल कल सब भूल गया मैं।
सागर से निकला मोती हूँ, नग में सजके मन हर्षाया है।।

#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना

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