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2 Jul 2023 · 1 min read

शौक-ए-आदम

शौक-ए-आदम

दुनिया ये तेरी मेरी ,फरक फकत के यूं है,
ना आरजू हुनुज है , ना कोई जुस्तजू हैI

दियार-ए-खंजर माफिक, है मंजर कायनात के,
ताऊन से भी उसरत, तबियत हालात केI

धुएं का असर है कि , लहर इक सड़ा हुआ,
जहर में बसर है ये , खाक में पड़ा हुआ।

बह रही ना हर सहर ,मसर्रत बहार की,
शामें है शाम-ए-हिज्र ,रातें शब-ए-फ़िराक़ कीI

सजदे तो मैं भी रखता ,रहगुजर में माबूद,
फकत तल्खी-ए-जिस्त से ,रूह तन्हा रंज-ए-वजूद।

चलो चलें पूरा करने ,अपने आपने शौक,
तू पैदा कर नस्ल-ए-आदम, मैं मुकर्रर अपनी मौतI

अजय अमिताभ सुमन

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