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30 Jun 2023 · 1 min read

“सत्य” युग का आइना है, इसमें वीभत्स चेहरे खुद को नहीं देखते

“सत्य” युग का आइना है, इसमें वीभत्स चेहरे खुद को नहीं देखते है। हर युग में सत्य अपना स्वरूप बदलता है जैसे, सतयुग-समर्पितसत्य, त्रेता- मर्यादित सत्य, द्वापर-परिभासित्सत्य और कलियुग में प्रायोजित सत्य। क्यों
जय श्री सीता राम

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