Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
23 Jun 2023 · 1 min read

दोहे : प्रभात वंदना हेतु

प्रथम पुरुष भगवान है, जग जिसका दरबार।
मानव कठपुतली बना, चले उसी अनुसार।।

माया उसकी भक्त है, करे मनुज लाचार।
जो इससे बचकर चला, वह भव-सागर पार।।

उसने रचे प्रपंज हैं, उसके सारे खेल।
मानव तो है मोहरा, दुनिया उसकी जेल।।

नाच नचाए है वही, भाग्य कर्म का मेल।
कंकर मानव को बना, छोड़े चला गुलेल।।

मानव मद में भर चला, मैं की पकड़ी लीक।
बड़ा दंभ में हो गया, गया नहीं नजदीक।।

प्रथम पुरुष का भक्त बन, जीवन हो आसान।
मिले घना आनंद वह, किया नहीं अनुमान।।

प्रेम करो प्रभु से सदा, चलो प्रीत की राह।
गर्व शाँति सुख सब मिले, सागर सरिस अथाह।।

प्रथम पुरुष का जप करो, जिसके नाम अनेक।
जो मन को भाए वही, श्रेष्ठ गीति है एक।।

गागर मन का प्रेम से, भरलो आठों याम।
सुबह सुहानी आपकी, रंग भरी हो शाम।।

#आर.एस. ‘प्रीतम’

Loading...