चाहते हैं हम यह

(शेर)- तुम्हें कोई गैर नहीं, हम अपना ही समझते हैं।
यही वजह है कि हम बेताब हैं, मिलने को तुमसे।।
करो कुछ बातें हमसे,खुशी हमको भी मिले।
अच्छी नहीं यह खामोशी, तुम मिलो आकर हमसे।।
——————————————————
चाहते हैं हम यह, तुम मिलो आकर हमसे।
आये हैं दूर से हम, सिर्फ मिलने को तुमसे।।
चाहते हैं हम यह——————–।।
कैसे गुजरे हैं यहाँ दिन, बिन तुम्हारे हमारे।
देखिए आकर जरा आप, यहाँ पर हाल हमारे।।
बहाना छोड़िये अब आप, हाल पूछो तुम हमसे।
चाहते हैं हम यह——————–।।
—————————————————-
(शेर)- सफर में हमने, बनाना चाहा किसी को हमसफर।
मगर मजबूर थे दिल से, कि हमने छोड़ दिया वह शहर।।
——————————————————
तोड़ो मत तुम ये फूल,महकने दो तुम इनको।
लबों पे होगी बहारें, चहकने दो तुम इनको।।
हटाकर तुम यह पर्दा, जरा हंस दो तुम दिल से।
चाहते हैं हम यह ————————-।।
———————————————————
(शेर)- झूठी हैं तुम्हारी वो सभी बातें, और वफायें।
गर समझते हो हमें अपना, तो नहीं हमसे शर्माइये।।
——————————————————
करो यकीन तुम हम पर, नहीं बदले अभी भी हम।
वफ़ा तुम तो नहीं होंगे, वफ़ा तुमसे है लेकिन हम।।
अगर शिकवा हो हमसे, कहो खुलकर वह हमसे।
चाहते हैं हम यह ————————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)