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19 Jun 2023 · 1 min read

(दम)

उठते ही बोले सुन
पँछी ये गुनगुन।
बस सपने ना बुन
अब चलना हैं।

डर-डर-डर नहीं
डर के ना जड़।
लड़-लड़-लड़ तूँ
खुद से ही लड़।

उठ कर गिरना
गिर कर झरना।
चाहे कमजोर पर
पग धरना है।

बस सपने ना बुन
अब चलना हैं।।

रोकती ना राहें
टोकती ना राहें
कहीं छोड़ अधर मुख
मोड़ती ना राहें।

पथ में ही दम
पथ में ही हम
पथ में ही गम
कम करना है।

उठते ही बोले सुन
पँछी ये गुनगुन।
बस सपने ना बुन
अब चलना हैं।।

युवा कवि:
महेश कुमार (हरियाणवी)
महेंद्रगढ़, हरियाणा

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