"If Money is lost Nothing is lost,
मेरी घरवाली
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
एक न एक दिन मर जाना है यह सब को पता है
तेरे क़दमों पर सर रखकर रोये बहुत थे हम ।
रमेशराज के कहमुकरी संरचना में चार मुक्तक
नही रहेगा मध्य में, दोनों के विश्वास
हर किसी का कर्ज़ चुकता हो गया
वर्षों पहले लिखी चार पंक्तियां
Staring blankly at the empty chair,
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई
भोले बाबा की कृप
Sarla Sarla Singh "Snigdha "