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11 Jun 2023 · 1 min read

अनकहा रिश्ता

शीर्षक -अनकहा रिश्ता
ये कैसा अनकहा रिश्ता है,
जो तेरे मेरे बीच है।
स्नेहिल बन्धन है,
जो हमारे क़रीब है।
मुझे भावों के अल्फाज़
नहीं मिलते,
जैसे सुरों के साज़ नही मिलते।
जब भी होती हूँ तेरे,
यादों के घेरे में।
अनबोला सा एहसास
छा जाता है।।
ये कैसा अनकहा रिश्ता है।
एक झलक देखने को,
सज़दे में झुकती हूँ।
आते हो क़रीब तो,
निमिष भी पलकें नहीं उठती।
क्यों मन बिंधा सा है तुझसे,
खुलती नही तुझसे जुड़ीं गांठे।
रूकता नहीं आँखों का सावन,
ये कैसा अनकहा रिश्ता है।
क्या कहूँ तुझको?
कौन हो मेरे।
कोई नाम नहीं है
हमारे प्रतिबंध का।
खुला आकाश हो जैसे,
पंछियों का।
ऐसे ही अनन्त में खो जाऊं।
बाँध लूँ डोर तुझसे।
क्यों मन करता है।
ये कैसा अनकहा रिश्ता है।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )

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