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10 Jun 2023 · 1 min read

बोझ

हो गई बोझ सी ज़िंदगी
पर जाने क्यों नहीं पाती उतार
बढ़ के रोक लेते हैं कदम
मेरे वादे
जो किए थे कभी
ख़्यालों की तन्हाई में
जब उमड़ा था हुज़ूम
तेरी यादों का
रह गई थी कसमसाती
और
लगी थी ठेस उस दिल पर
बेइंतहा करता था जो
यकीं तुझपर
अब
मेरी ज़िंदगी ही हँसती है
पल-पल मुझ पर
मिला चाहतों का सिला
बेरुख़ी बनकर।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )

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