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7 Jun 2023 · 1 min read

वक्त और किनारा

वक़्त के किनारे से लम्हों को उठा रहा था
चुन रहा था लम्हों को जब कोई बेहद याद आ रहा था

याद करते करते उनको आँखे छलक गयी
मोती बन कर गिरे जो आँसु उसमें इक सूरत झलक गयी

लम्हों को थामे हाथ में जब उन्हें जी रहा था
दर्द बह रहा था आँखो से और आँसुओ को पी रहा था

याद आ गया था एक ऐसा लम्हा हसीन
दिलनशीन थी ज़ेहन में और चेहरे पे मुस्कान महीन

चल पड़ा मैं उन लम्हों को समेटें
यादों की गठरी बना कर, तिजोरी में रखूँगा दिल की
कोई तोड़ ना पायें ऐसा ताला लगा कर

अब छू कर निकल जाते है अहसास बेशुमार
ना कोई दर्द होता है ना ही आँसु बहते है बेकार.।।

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