Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
6 Jun 2023 · 1 min read

क्षीर सागर

क्षीर सागर मे मची हैं, खलबली तुम देख लो।
चल रहा हैं समुद्र मंथन, हो सके तो देख लो।।
गद्दार बैठे सभी धर्मों मे, अब तो आँखे खोल लो।
राष्ट्रवाद की नई परिभाषा, बन रही हैं सोच लो।।

क्षीर सागर मे मची हैं, खलबली तुम देख लो।
किस तरफ रहना तुम्हे हैं, आँखो की पट्टी खोल लो।।
बिखरे हुए हैं राष्ट्रवादी, बिन कहे कुछ सोच लो।
आज संगठित ना हुए तो, देश को फिर तोड़ लो।।

क्षीर सागर मे मची हैं, खलबली तुम देख लो।
गद्दार चारो तरफ हैं बैठे, जान लो अब मान लो।।
क्षीर सागर बन गया हैं, आज पूरा देश ये।
मंदराचल बना गया हैं, आज संसदो का भवन।।

समस्याए आज जो हैं खडी, वो ही वासुकि नाग हैं।
कच्छप बना प्रधान सेवक, क्या इसे कुछ शौक हैं।।
क्षीर सागर में मची हैं, खलबली तुम देख लो।
मथना इसे मिलकर हमें, कहीं देशद्रोही ना जीत ले।।

पीठ पीछे तारीफ करते, विरोध करते ये रोड पे।
सबकी समझ में हैं आ गया, हो रहा नही ठीक ये।।
हो रहे भ्रमित न जाने क्यों, दे रहा कौन सीख हैं।
आने वाली नस्लें भी, पूछेंगी हमसे रीझ कर।।

क्षीर सागर में मची हैं, खलबली तुम देख लो।
क्यों नहीं तुम खड़े हुए, जब लड़ रहा वो एक था।।
हलाहल अंदर हैं छुपा, अमृत कलश भी देख लो।
क्षीर सागर में मची है, खलबली तुम देख लो।।
================================
“ललकार भारद्वाज”

Loading...