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6 Jun 2023 · 1 min read

गीतिका

गीतिका-18
००००००
अब जलाना दीप ‌होगा
००००००००००००००

जागना होगा हमें गुलशन बचाने के लिये ।
बिजलियाँ तैयार हैं इसको जलाने के लिये ।।

भौक देते लोग खंजर पीठ में‌ हिचकें नहीं ।
ढूँढना होगा उन्हें सबको दिखाने के लिये ।।२

वे नहीं किंचित झिझकते तोड़ देते फूल को ।
श्रम समय लगता बहुत कलियाँ उगाने के लिये ।।३

हैं परिस्थितियाँ विकट हर ओर सिलगी आग है ।
लोग कुछ आतुर यहाँ इसको बढ़ाने के लिये ।।४

खोजते भँवरे फिरेंं‌ कलियाँ कहाँ पर हैं ‌खिलीं ।
सोचिये कैसे खिलें वे मुस्कुराने के लिये ।।५

कोहरा सा घिर रहा है सूझती राहें नहीं ।
सूर्य को लाना पड़ेगा तम हटाने के लिये ।।६

जुगनुओं से कब हुआ सोचो उजाला रात में ।
अब जलाना दीप ‌होगा पथ दिखाने के लिये ।।
०००
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
***

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