Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 Jun 2023 · 1 min read

छुरी दिलों पे चलें

1212 1122 1212 22
ग़ज़ल

यकीं न हो तो चलो पूछ लो जमाने से।
छुरी दिलों पे चले मेरे मुस्कुराने से ।।

किया जो तुमने निवेदन ये जब जमाने से।
बढ़ेगा रोग नहीं दूरियाँ बनाने से।।

पड़े जो चाँदनी तपती धरा भी शीतल हो
कि रोज रात में तारो के टिमटिमाने से

हो उम्र भर के लिये कैद मेरी जुल्फों में ।
रिहाई है नहीं मुमकिन ये कैदखाने से।।

मिला है दान मगर कह रही हैं सरकारें।
सुधरती अर्थव्यवस्था शराबखाने से।।

शराबियों से हुई पार दूरी दो गज की।
कदम बहक गये पीते ही लड़खड़ाने से।।

महक न आये कभी कागजों के फूलों में
नहीं है फायदा गुलदान को सजाने से

जो मोहपाश में जकड़ा है वो है पाखंडी।
न होगा संत जटा जूट के बढ़ाने से।।

नज़र से दिल मे समाये बसे हो रग रग में
रुकें ये धड़कनें साजन तुम्हें भुलाने से।।

पता है तुमको हूँ मगरूर मैं नहीं लेकिन
हुए हो दूर मुझे ज्यादा आजमाने से ।।

लगाई देर अगर अब जो तुमने पल भर की ।
मिलेगी लाश मेरी इस गरीबखाने से।।

मिटाने घर का अंधेरा दिया ही काफी है ।
उजाला मन में हुआ ज्योति के जलाने से।।

✍श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा

Loading...