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4 Jun 2023 · 1 min read

कली और गुलाब

सबेरे जागकर उठा दिल पर कुछ भार सा लगा
पतझड़ का यह मौसम कुछ दिलदार सा लगा।

तन स्वस्थ था मगर दिल कुछ बीमार सा लगा।
नाजुक कली का गुलाब खुद शिकार सा लगा।

बाग से उड़ती आई खुशबू बड़ा असरदार सा लगा,
उजड़ी हुई महफ़िल पंखुड़ियों से गुलजार सा लगा।

छू कर देखा जब पंखुड़ियों को तेज धार सा लगा
स्पर्श की ठंडी छुअन भी खुद अंगार सा लगा।

जो हो चुका था लापरवाह वह खबरदार सा लगा,
बेचारा भोला भाला था दिल अब होशियार सा लगा।

कश्ती की सवारी थी कली गुलाब पतवार सा लगा,
कली को चूमने की चाहत में गुलाब बेकरार सा लगा।

विश्वास के धंधे में आजमाने की चाहत अब व्यापार सा लगा,
कली गुलाब की मोहब्बत में ‘अमन’ खुद गिरफ्तार सा लगा।

Language: Hindi
168 Views
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