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4 Jun 2023 · 1 min read

अद्भुत मानव मन

मानव-मन कितना अदभुत,
कितना चंचल है धरती पर,
कल्पना शक्ति का यही केन्द्र,
उदभूत यहीं पर अभिलाषा।

आकर्षण, लोभ बाँछना के,
उत्पत्ति-कारक तत्व प्रभावी,
सकल ज़रूरत भूतल पर,
होतीं परिणाम बाँछना का।

इच्छाऐं सीमाहीन सदा,
घटतीं बढ़तीं हैं मानव की,
इच्छाऐं अगर नियंत्रित हों,
जीवन रसहीन नहीं होता।

सापेक्ष आय के व्यय ज्यादा,
कारण यह मात्र ज़रूरत हैं,
यदि ये सीमित हो जाती हैं,
मानव-मन शान्त रहा करता।

–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)
(अरुण)

Language: Hindi
384 Views
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