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4 Jun 2023 · 1 min read

पानी सिर से बह रहा , जाय

पानी सिर से बह रहा , जाय
भाड़ में देश ।
किये करोड़ो खर्च जब ,,तब ये बने विशेष ।।
तब ये बने विशेष ,भरा घर केवल अपना ।
लोकतंत्र का भला , देखता रहता सपना ।
न्याय नीति की बात , आज हो गयी पुरानी ।
ऐसे करतब रोज ,देश है पानी पानी ।।
सतीश पाण्डेय

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