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31 May 2023 · 1 min read

शर्म से मुख कहीं छिपाना है

शर्म से मुख कहीं छिपाना है
**********************

साथ उनका बड़ा सुहाना है,
शर्म से मुख कहीं छिपाना है।

खूब गहनों लदी खड़ी दुल्हन,
पास आकर खड़ा दिवाना है।

आज पूरा हुआ हमारा सच,
ख्वाब देखा बहुत पुराना है।

लाल साड़ी में हूर सा यौवन,
तीर दिल में लगा निशाना हैं।

है नजर तीर कातिलना सी,
अब न कोई चला बहाना है।

शान शौकत भरी अदा तेरी,
रूप जैसे भरा खजाना है।

तार जो प्रेम के मिले भू पर,
चाँद नभ से यहाँ बुलाना है।

लूटते हो यार चैन मनसीरत,
हर घड़ी पल जिया जलाना है।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)

Language: Hindi
267 Views
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