Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
31 May 2023 · 1 min read

चंद मिसरे

गजले दौर
सन्देश कहीँ से अच्छा नहीँ आता।
तबियत को आजकल कुछ भी नहीं भाता।

सियासती जमाने का कैसा दौर है,
नफरत की आंधियों को रोका नहीं जाता ।
माँ बाप को ही बोझ मानते हैं बेटे,

जिनकी बिना खैर के निवाला नहीं जाता

जब से किराये से दिल मिलने लगे हैं,

उसको हमराज कहने में मजा नहींआताl

बेटी के लौट आने तक कितने सवाल हैं,

बेशक वो भला हो यकीं नहीं आता l

कैसे बताऊँ तुम किस तरह के हो ,

तुमसा जमाने में कोई नजर नहीं आता l

हम समझ लेते रब की आँख टेढ़ी है ,

जब भी घर कोई मेहमान नहीं आता l

मत टोको उठा लेने दो आसमा सर पे,
जब तक पाप का घड़ा भर नहीं जाता l

जानवरों से ज्यादा खतरनाक आदमी,
हो जाये कब आदमखोर समझ नही आता l
जंगलो को काटकर नंगा कर दिया ।
अब बाद के अंजामो को सोचा नहीं जाता।
सतीश पाण्डेय

Loading...