Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 May 2023 · 1 min read

खत

कुछ खत तुम्हारे नाम की मैंने
कोरे पन्नों पर सजाई थी।
जिसे अपने जज्बातों से शृंगार कर
भावनाओं का जेवर पहनाई थी।
भेजना चाहती थी तुम्हारे पते पर
पर कुछ झिझक मेरे मन की
हिम्मत नही जुटा पाई थी।
और आज भी पड़े हैं यूँही बंद लिफाफे में
मेरे मचलते अरमानों की तरह।

कुछ खत तुम्हारे नाम की मैंने लिखी थी,
जिसमें थी कुछ तुम्हारी कुछ हमारी बातें।
उन मधुर कल्पनाओं का जिक्र जिनसे
खूबसूरत लगने लगी थी जिंदगी
और हो गयी थी मुझे जिंदगी से मुहब्बत
क्योंकि कल्पना सा मनोरम बताओ
कहाँ होती हैं कोई भावनाएं।
मगर वह खत आज भी मेरी डायरी में पड़े
मेरा मुँह चिढ़ाते हैं।

कुछ खत तुम्हारे नाम की अधलिखि सी
अब भी पड़ी है मेरे दराज में
चाहती हूँ पूरी कर भेज दूँ तुम्हारे पते पर
और बताऊँ तुम्हें
क्या मायने रखते हो मेरे जीवन पर
क्यों तुम्हारे बिन ये जिंदगी फीकी सी लगती।

Loading...