Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 May 2023 · 1 min read

नयी भोर का स्वप्न

नई भोर का स्वप्न

रात्रि का अवसान हुआ
गहरी का ली चादर ओढ़े
रात ने धीरे से चांद के माथे को चूमा और कहा,
लो अब मै विदा लेती हूं।
जाते जाते सिर्फ यही कहना है
तुम गलत नहीं थे, कहते थे
मेरा साथ एक सपना था ।
अब बीते सपने में दिख रही
एक बार फिर आशा की किरण
दूर पहाड़ के पीछे सूरज की
आहट सुनने लगी हूं।
आशा की अरुणिमा से सजा
आकाश प्रतीक्षारत है उस
प्रकाश को गोद में भरने को
जिसे बंद आंखों से नहीं
खुली आंखों में सहेजना है।
मेरा जाना बिछड़ना सही
पर सूरज के उजाले की
गुनगुनी धूप पसर कर
अपने आंचल में सभी के
लिए खुशियां ले आयेगी,
जिसने मेरे साये से लिपटकर
सिसक कर वक्त गुजारा था।
सुनते ही उमंग अपने हाथ में
सुनहरी रेत भरकर बोली
आओ तुम्हारा आचमन कर लूं।
स्वागत करें उस सुबह का
जिसके हाथ में ढेरों सपने हैं
एक सपना ऐसा भी होता है
जिसे कभी टूटने नही देंगे
वो नई भोर का सच्चा सपन होगा।

Loading...