Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
27 May 2023 · 1 min read

अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,

अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,
क्यूंकि अब तेरे सिवा मेरी ,कोई चाह भी नहीं ll

बस तेरी ही गलियों मैं, मुड जाते है यूँ कदम ,
जैसे चलने के लिए बाकी , कोई राह भी नहीं ll

न परखो इतना,भी “रत्न” की चाहत को ए ज़नाब ,
समंदर है, माप सका जिसकी कोई थाह भी नहीं ll

तड़प जाता है गुरूर ,रुसवा हो तेरी महफ़िल मैं
चुप से उठते है,होती दिल की कोई आह भी नहीं ll

Loading...