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26 May 2023 · 1 min read

सबक

सबक़”

कहते हैं आपदा कभी अकेले नहीं आती है,
अपने साथ संकटों का पूरा समूह लाती है।

जिन्होंने शांति काल में दूरदृष्टि रखी वो झेल गए,
संकटों के मुश्किल खेलों को भी खेल गए।

आपदा कष्ट तो देती है पर सबक़ भी सिखाती है,
शांति काल में नहीं सोचा अहसास दिलाती है।

यदि आत्मनिर्भर का अभ्यास जीवनशैली हो,
संकटकाल में ना फिर कोई कष्टों की अठखेली हो।

कुछ गहरे अनुभव दे गए ये संकट बेवक्त के,
ग़ैर निकले जो ‘साथ हैं’ कहते नहीं थे थकते।

अपनापन दिखाने वाले बुरे वक्त में बना लेते हैं दूरी,
सबक़ मिला कि बुरे वक्त के लिए बचत है ज़रूरी।

सबक़ कि संकट में धीरज ही सच्चा साथी है,
ऐसे में अपने और ग़ैरों की परख हो जाती है।

इन अनुभवों के लिए तो भारी मूल्य चुकाने पड़े हैं,
क्योंकि ये भारी कष्टों की बुनियादों पर खड़े हैं।

ऐसे में कैसे इंसान स्वार्थ में संवेदना खो देता है,
संवेदनहीनता को देख कर वक्त भी रो देता है।

इन मिले अनुभवों के अहसान को उतारना होगा,
इस दौर के ‘रावणों’ को चुन-चुन कर मारना होगा।

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