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26 May 2023 · 1 min read

जल रहा है

तपिश
शीतल जल रहा है..।
दिन हथेली मल रहा है…।

सुबह
रूठी मुरमुराकर ।
अरूण से
नज़रें चुराकर ॥
दोपहर खल खल रहा है..।

छाँव
ढूँढे छाँव को ही।
पाँव जैसे
पाँव को ही ॥
धूप में कोई गल रहा है…।

शाम
आकर कह रही है।
रात में वह
बह रही है ॥
आज क्या जो कल रहा है..।

बोतलों
में शीत बैठी।
प्यास की
बन मीत बैठी ॥
भाँप जिन्न निकल रहा है..!

तन का
जंगल है झुलसता।
मन का
पर्वत है उलसता ॥
जैसे दावानल रहा है..।

स्वेद
में पानी बदल कर ।
तन से निकले
है उबल कर ॥
ख़ुद को ‘महज़’ छल रहा है..।

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