एक किताब बन गयी
उसकी और मेरी दास्ताँ,
एक किताब बन गयी।
कहानियाँ तो भूल जाती है,
मेरी जिंदगी का वो,
एक ख़िताब बन गयी।
उसकी और मेरी दास्ताँ,
एक किताब बन गयी।
वक़्त हमने बिताया था,
कुछ रह कर साथ साथ।
साझा किये थे तब,
अपने दिल के जज्बात।
बीते हुए लम्हों की,
वो आफताब बन गयी।
उसकी और मेरी दास्ताँ,
एक किताब बन गयी।
चाहे जितनी भी हो दूरियाँ,
हम दोनों के दरमियाँ,
भूल न पाउँगा ताउम्र,
ये हसीन दास्ताँ।
सांसों में महकता हुआ,
वो महताब बन गयी।
उसकी और मेरी दास्ताँ,
एक किताब बन गयी।
ये दुआ अपने रब से,
अब मांगते है हम।
मिल जाये उसे खुशियां,
और हो जाये दूर गम।
हंसी उसके चेहरे से,
न हो कभी कम।
बंद आँखों का वो,
एक ख्वाब बन गयी।
उसकी और मेरी दास्ताँ,
एक किताब बन गयी।