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24 May 2023 · 1 min read

मुट्ठी भर आस

मुट्ठी भर आस रहने दो
विश्वास तनिक सा ही सही
नयनो के इस सूक्ष्म उपांत में
इक नवीन उजास रहने दो

तिमिर सघन गहरा भी होगा
पथ अनाम अविच्छिन्न बनेगा
दीप की मद्धम लौ जलाना
प्रदीप तब वहाँ भर जाना

टूट जाएगी उम्मीद चलते
लड़खड़ाएंगे पग भी ढलते
बाधाओं से कभी न थकना
अबाध,अविकल,सदैव चलना

स्याह निशा भी ढल जाएगी
नीर कुमुदनी खिल जाएगी
रवि फिर से जगमगायेगा
नव प्रभात दिखलायेगा

✍”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

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