मुकम्मल राबता
रखना है तो मुझसे रख तू मुकम्मल राब्ता।
बढ़ा न मेरी मुश्किलें, तुझे खुदा का वास्ता।
बहुत मजबूर हो गये है हम,तेरी चाहत में ।
तुम्ही को ढूंढते हैं हम, हर किसी आहट में।
बहुत मुश्किल है ऐसे में,दिल को समझाना।
तेरे आने की चाहत में, रोज़ दीप जलाना।
पूछ मत हमसे इज्तिराब ए शौक हमारा।
इश्क़ में दीवाने ने , दिल तुझपे था वारा।
मोहब्बत में दो हो तो उन्हें एक ही जानों
आग का दरिया है,बचो इससे मेरी मानो।
सुरिंदर कौर