Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
23 May 2023 · 1 min read

वो कितना अमीर

वह पर्वत से ऊंचा है सागर से भी गहरा है
मुझ पर पड़ने वाली हर छाया पर पापा का पहरा है
नि:शब्द रह गई मैं जब उनके बारे में कुछ शब्द लिखने बैठी
सिमट गई भाषा की चादर जब मैं उनकी परिभाषा लिखने बैठी
नीम सा वो ऑक्सीजन है मेरी
पत्तियों सी आवाज में कड़वाहट जरूर है
बहुत शीतल है उनकी छाया मुझे मेरे पापा का गुरूर है
पिघल जाती है मेरी सारी बुराइयां वह सूरज सा गर्म है
मेरी हर इच्छा को अपनी जरूरत मानने वाला
वो रूई से भी नर्म है
जिस जेब से मेरे घर का खर्च बड़ी मुश्किल में चलता है
उतने ही पैसों में भी मेरी हर खुशी खरीदने को हाजिर है
सुख समृद्धि सुकून की मेरी दुनिया रच रहे
मेरे पापा इतने काबिल है
््मैंने हर सांस करजी उनसे फिर भी मानते मुझे अपनी तकदीर है
हर शाम चांद लाते हैं मेरे लिए वो इतने अमीर है

Loading...