Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
20 May 2023 · 1 min read

आत्मबली हैं हम

आत्मबली हैं हम हमसे, हर महाशक्ति है हारी।
हम धरती के पुष्प अनूठे, सुरभि हमारी न्यारी।।

पंख कल्पना के पाकर हम, दूर – दूर तक उड़ते।
दृष्टि लक्ष्य पर रहती हरदम, पीछे कभी न मुड़ते।।
अचरज भरे काम करते हम, गति सर्वत्र हमारी।
हम धरती के पुष्प अनूठे, सुरभि हमारी न्यारी।।

हम करते अम्बुधि अवगाहन, गिरि- शिखरों पर चढ़ते।
हर बाधा, अवरोध पारकर, प्रतिपल आगे बढ़ते।।
होते चरण न शिथिल कभी, हम आप्तकाम अवतारी।
हम धरती के पुष्प अनूठे, सुरभि हमारी न्यारी।।

हम नचिकेता, कालविजेता, युगचेता कहलाते।
जग में अपने पराक्रमों की, कीर्ति – ध्वजा फहराते।।
करते व्यक्त न कभी किसी के, सम्मुख निज लाचारी।
हम धरती के पुष्प अनूठे, सुरभि हमारी न्यारी।।

सिखलाते हैं दुनिया को हम, स्वाभिमान से जीना।
रहते सदा विनम्र, गर्व से, उन्नत अपना सीना।।
भारतभूमि हमें लगती है, प्राणों से भी प्यारी ।
हम धरती के पुष्प अनूठे, सुरभि हमारी न्यारी।।

महेश चन्द्र त्रिपाठी
R 115 खुशवक्तराय नगर
फतेहपुर – 212601
उत्तर प्रदेश ( भारत )
मोबाइल नं. 08840496659
ईमेल – mctripathi62@gmail.com

Loading...