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19 May 2023 · 1 min read

चर्चाएं आपस में करते नभ के दोनों (नवगीत)

नवगीत

चर्चाएं
आपस में करते
नभ के दोनों छोर निलय में ।

पुरवाई की विरह– वेदना
सुनता है सागर
पछुआ की लपटें दहती हैं
तपता खूब दिवाकर
प्यासी– प्यासी
नदियां बहती
थम –थम सूखेपन के भय में ।

आसमान से धूप उतरकर
बागों ,झरनों तक
छांव ढूंढती तपती जाती
लगभग शाम तलक
बैठ किसी
बरगद के नीचे
सो जाती बेसुध निर्भय में ।

गर्म हवाएं चक्रवात संग
करती हंसी ठिठोली
और गर्जना नभ करता है
विद्युत का हमजोली
निजी स्वार्थ में
मानव डूबा
फिर भी मायामय में ।

रकमिश सुल्तानपुरी

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