Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 May 2023 · 1 min read

पति की व्यथा

कुछ ज्ञान चाहिए था मुझको, और मान चाहिए था मुझको।
स्वाभिमान तो मुझमे काफी है, सम्मान चाहिए था मुझको।।
कुछ बातें तुमसे करनी थी, और मुलाकातें तुमसे करनी थी।
बेमतलब की बातें करी बहुत, कुछ मतलब की बातें करनी थी।।
बिन मतलब गुस्सा करते हैं, और गुस्से में हरदम लड़ते हैं।
यह लड़ना भिड़ना छोड़े अब, बिन बात का गुस्सा छोड़े अब।।
कुछ तनाव मुझे भी रहता है, और तनाव तुम्हें भी रहता है।
यह तनाव हमें ले बैठेगा, इस तनाव को क्यों ना छोड़े अब।।
है प्रेम नहीं मुश्किल जग में, और यह जग प्रेम का भूखा है।
है प्रेम प्रीत की भूख यहां, यह बात हमें क्यों ज्ञात नहीं।।
जीवन की राह में दर्द बहुत, और दर्दों से जीवन चलता है।
दर्दों से डर के जीवन में, डर जाएं ये कोई बात नहीं।।
ना मूर्ख मुझे तुम लगते हो, और ना मूर्ख ही मैं भी हूं शायद।
फिर मूर्ख बने क्यों हम दोनों, ये जग हम पर हंसता है।।
क्यों ना जग में हम मिसाल बने, करें प्रेम और बेमिसाल बने।
आदर्श बहुत हुए जग में, क्यों ना हम भी आदर्श बने।।
“ललकार भारद्वाज”

Loading...