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16 May 2023 · 1 min read

कैसा गीत लिखूं

जय माँ शारदे 🙏
गीत
—–
मन मंदिर में असमंजस है, कैसा गीत लिखूं!
कैसा गीत लिखूं !

पर-उपकार स्वार्थ में पलते,
छपते फिरते हैं कागज पर।
आज कंटीले बाजारों को,
कैसे प्रीत लिखूं !
कैसा गीत लिखूं……!

मतलब के सब रिश्ते नाते,
मतलब का जीवन बन बैठा।
कदम कदम पर कपट भरे हैं,
कैसे मीत लिखूं!
कैसा गीत लिखूं…..!

विजय बहस में भले मिले पर,
जीत न सकते अंतर्मन को ।
फिर जाना खाली हाथों है,
विधि की रीत लिखूं!
कैसा गीत लिखूं…..!

मानव ही मानव को छलता,
अहंकार की दारुण ज्वाला।
बेमौसम की तीक्ष्ण तपन को,
कैसे शीत लिखूं !
कैसा गीत लिखूं ….!

समझा मैं, हूँ विश्व विजेता,
विजय न पायी किंतु स्वयं पर ।
हार गले में ‘हार’ की लेकर,
कैसे जीत लिखूं !
कैसा गीत लिखूं.….!
✍️- नवीन जोशी ‘नवल’

(स्वरचित एवं मौलिक)

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