Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 May 2023 · 1 min read

पुरुष

टूटना,बिखरना
बिखर कर जुड़ना
बचपन से ही सीख जाता है
आँसुओं को वो अपने
सभी से छिपाता है
सबकी जरूरत के खातिर
जीवनपर्यंत कमाता है
तिल-तिल, पल-पल
खुद को मारकर
सबको जिंदा रख पाता है
बेटा, भाई, पति व पिता
हर एक किरदार निभाता है
पर उसका दर्द कोई न देखे
न वो किसी को दिखाता है
जब भी उसका अपना कोई
न उम्मीद या परेशान हो गर
दुख तकलीफ दूर करने में
वो खुद को भूल जाता है
पर जब जरूरत हो
उसे किसी की
खुद को अकेला ही पाता है
निरंतर कर्तव्य पथ पर
अंतहीन संघर्ष ही जीवन का
उसका अस्तित्व बन जाता है!

Loading...