Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 May 2023 · 1 min read

आज, पापा की याद आई

आज, पापा की याद आई

हमें बचपन में हमेशा सैर पर जाना होता।
असल में यह तो, एक बहाना होता।

कभी आइसक्रीम ,कभी मिठाई, कभी चॉकलेट, कभी खिलौना लाना होता।
पापा भी किसी जन्नत से कम नहीं होते।
माना कि सभी के पापा किसी देश के राजा नहीं होते।
पर उनके कंधे भी किसी पालकी से कम नहीं होते।

गुस्से में पापा यदि किसी बात पर रुलाते हैं, तो घंटों बैठ हमारे संग अपने गुस्से की माफी माँग जाते हैं।
अक्सर पापा समाज के तानों से तंग आकर बेटियों पर लगाम लगाते हैं।
कभी-कभी तुम हो पराई यह भी सुनाते हैं।

कभी अदब, कभी अंदाज, तो कभी स्वाभिमानी बन कैसे जीना है ? यह भी बतलाते हैं।

कभी-कभी अपने दिए संस्कारों को बेटी की जमा पूंजी बतलाते हैं ।

क्या कभी किसी के पापा बेटी के प्रति किसी सैनिक से कम ड्यूटी निभाते हैं?
बेटी पर आंच आए उससे पहले ही दौड़े चले आते हैं।

सबसे मुश्किल घड़ी आई,
जब करनी हो बेटी की विदाई।
पूरी बारात की पापा ने जिम्मेदारी उठाई।

अपनी सारी जमापूंजी भी दांव पर लगाई।

पर जब डोली में बैठी बेटी •••
तो पापा की भी जान पर बन आई।।
न जाने किस मनहूस घड़ी में किसने यह कड़ी बनाई,
आखिर क्यों होती है, बेटियाँ ही सदा पराई ??
क्यों होती है सदा बेटियों की ही विदाई ??
समाज की यह प्रथा अभी तक समझ न आई।

Loading...