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14 May 2023 · 1 min read

मुस्कानों की परिभाषाएँ

०३*
बैठ कंगनियों पर
कागा मत बोल ।।

लगा रहा हूँ ध्यान, टूटता ।
मन चंचल चालाक रूठता ।
उड़ जा रे, जा औऱ कहीं तू डोल ।।

अब की बार यहाँ
मत आना ।
बुन बिरहा का ताना
बाना ।
स्वप्न पिटारी अपने घर में खोल ।।

समय सजीला बीत
रहा है।
जीवन का घट रीत
रहा है ।
छोड़ बजाना सपनों के ये ढोल ।।

गई दीवाली, रात पूस की ।
बची चदरिया बनी तूस
की ।
चढ़ा रहा क्यों नर्म रेशमी खोल ।।

बैठ कंगनियों पर कागा मत बोल ।।

@श्याम सुंदर तिवारी

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