Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 May 2023 · 1 min read

पंछी और पेड़

पंछी और पेड़

इक पंछी कुछ गीत गाये जा रहा था
मैंने बुलाया, और उससे पूछा
न मौसम सुहाना, न बारिश न पानी
फिर गीत क्यूँ तुम गाये जा रहे हो?
क्यूँ शोर इतना मचाये जा रहे हो?
वो आ के बोला , धीरे से मुझकों
न बारिश का मौसम ,न बरखा, न पानी
बिछुड़ गयी है मुझसे तो मेरी रानी
मैं तो यहाँ पे रुदन कर रहा था
तू मानव है मानव न समझे ये भाषा
इक घोसला था , मिलके थे रहते
इक -दूजे का खयाल थे रखते
हम दोनों प्यारे प्रेमी थे सच्चे
उसने दिए फिर प्यारे से बच्चे
खुश थे सभी हम, सच हो जैसे सपना
प्यारा सा था ये परिवार अपना
इक दिन आया इक मानव कहीं से
पेड़ को काटा उसने जमीं से
मैं तो गया था अपनी चोंच भरने
बच्चें थे भूखे उनका पेट भरने
आया जो वापस , वो पेड़ नहीं था
वो पेड़ नहीं था, मेरी ज़िंदगी था
अब उनकी यादों में रोये जा रहा हूँ
तुमको है लगता गाये जा रहा हूँ
ऐसे ही शोर मचाये जा रहा हूँ।

– नन्दलाल सुथार’राही’

Loading...