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10 May 2023 · 1 min read

व्यथा

कैसी ये व्यथा अजब
हॄदय करता करुण
क्रन्दन प्रतिपल विकल
अंतस्तल कथा निर्गत

सूखे नीड अवलोकित
कर सिहर जाता हिय
उदधि कंज के संग संग
हर्षित हो प्राण प्रिय

अधर उपजे उपालंभ
चित्त कदाचित सा अधीर
अनायास नव आरम्भ
नयन भरे अगाध नीर

निशि के घनघोर तिमिर
हो उठता हॄदय विकल
पीड़ा विस्मृत कर फिर
प्रमुदित नव विहान

“कविता चौहान”
✍🏾स्वरचित एवं मौलिक

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