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8 May 2023 · 1 min read

#सामयिक_ग़ज़ल

#सामयिक_ग़ज़ल
■ बदचलन अदबी रिसाले हो गए
【प्रणय प्रभात】

■ आपके घर में उजाले हो गए।
हम चिताओं के हवाले हो गए।।

■ सुर्खियों में झूठ ने पाई जगहा।
बदचलन अदबी रिसाले हो गए।।

■ पुतलियां देशी, विदेशी उंगलियां।
अब ये मंज़र देखे-भाले हो गए।।

■ कल तलक कपड़ा न था तन पे हुजूर!
आप कब से जेब वाले हो गए?

■ दोस्तों की मेहरबानी उठ गई।
और हम तक़दीर वाले हो गए।।

■ हम वफ़ा की राह चल के आए हैं।
देखिए, पांवों में छाले हो गए।।

■ मिल गया विरसे में अब्बू का क़लाम।
छोकरे दीवान वाले हो गए।।

■ नेवलों-सांपों में यारी हो गई।
हम-पियाले हम-निवाले हो गए।।

■ चाबुकों की चोट के आदी हुए।
लोग अब सच में निराले हो गए।।

■प्रणय प्रभात■
संपादक / न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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