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24 Apr 2023 · 1 min read

पग-पग पर हैं वर्जनाएँ….

पग-पग पर हैं वर्जनाएँ।
सूखे घन- सी गर्जनाएँ।

गति नियति की अद्भुत,
अद्भुत उसकी सर्जनाएँ।

पल भर के ही भ्रूभंग पर,
टूटतीं लौह-अर्गलाएँ।

साथिन हैं जीवन भर की,
जीवन की ये विडंबनाएँ।

जो होना है होकर रहता,
काम न आतीं अर्चनाएँ।

राहें बदलती जीवन की,
टूटती – जुड़तीं श्रंखलाएँ।

सच कैसे भी हो न पाएँ,
मन की कोरी कल्पनाएँ।

अनगिन चोटें दर्द अथाह,
मुँह बिसूरती वंचनाएँ।

स्वत्व कैसा स्वजनों का,
वक्त पर जो काम न आएँ।

कोई तो अपना हो यहाँ,
जख़्म किसे कैसे दिखाएँ ?

पी ले ‘सीमा’अश्क सभी,
आँखे नाहक छलछलाएँ।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“चाहत चकोर की” से

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 292 Views
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