तुम क्या चाहते हो

तुम क्या सोचते हो,
कि होश में नहीं हूँ मैं,
और कर रहा हूँ नशे में बात,
तुम उगलवा रहे हो मुझसे राज,
कि मेरी असलियत क्या है,
मेरा घरबार और मैं क्या हूँ।
तुम लाधना चाहते हो मुझ पर,
महफिल का हुआ खर्च का बोझ,
और मजबूर करना चाहते हो,
कि अगली बार मेरी बारी है खर्च की,
कि तुम आगे बढ़ चुके हो हमसे,
इसलिए मुझको देनी है अब दावत।
और मैं ना भी नहीं कर सकता,
मैं खुद यह भी नहीं सुन सकता,
मैं कंजूस हूँ और मैं मतलबी हूँ,
दूसरों के रुपयों पर करता हूँ मैं मौज,
और मैं रखना भी नहीं चाहता अहसान।
तुम चाहते हो मुझको गुलाम बनाना,
बंद करना चाहते हो मेरी आवाज,
झुकाना चाहते हो मेरा सिर,
मिटाना चाहते हो मेरी हस्ती,
लेकिन मैं गुरु हूँ और आजाद हूँ,
और समझदार हूँ तुम्हारी तरह बहुत,
तुम क्या सोचते हो—————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)