Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Apr 2023 · 3 min read

हे राम जी! मेरी पुकार सुनो

हे राम जी! मेरी गुहार सुनो
***********************
हे राम जी! मेरी पुकार सुनो
एक बार फिर धरा पर आ जाओ
धनुष उठाओ प्रत्यंचा चढ़ाओ
कलयुग के अपराधियों आतताइयों, भ्रष्टाचारियों पर
एक बार फिर से प्रहार करो।
उस जमाने में एक ही रावण और उसका ही कुनबा था
जो कुल, वंश भी राक्षस का था
फिर भी अपने उसूलों पर अडिग था,
पर आज तो जहां तहां रावण ही रावण घूम रहे हैं
जाने कितने रावण के कुनबे फलते फूलते
वातावरण दूषित कर रहे हैं।
इंसानी आवरण में जाने कितने राक्षस
बहुरुपिए बन धरा पर आज
स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं
समाज सेवा का दंभ भर रहे हैं
सिद्धांतों की दुहाई गला फाड़कर दे रहे हैं
भ्रष्टाचार, अनाचार अत्याचार ही नहीं
दंगा फसाद भी खुशी से कर रहे हैं
दहशत का जगह जगह बाजार सजा रहे हैं।
जाति धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं
अकूत धन संपत्ति से घर भर रहे हैं।
आज हनुमान, निषाद राज, केवट कहां मिलते
भरत, लक्ष्मण शत्रुघ्न सिर्फ अपवाद ही बनते
कौशल्या, सुमित्रा सरीखी मां भी आज कितनी है
आज की कैकेई, मंथरा बड़े मजे में रहती है
कौन आज आपकी तरह राम बनना चाहता है
आपके आदर्श का सिर्फ बहाना बनाना जानता है।
आज भी आपके दुश्मन हजार हैं
चोरी छिपे मौका मिला तो वार को भी तैयार हैं।
जब पांच सौ साल बाद जैसे तैसे
आपको अपना घर/मंदिर,जन्मस्थान मिल रहा है
तब आज भी जाने कितनों का खाना खराब हो रहा है
और एक आप हैं
कि आपका आदर्श आज भी नहीं डिगता
डिगता भी कैसे जब सिंहासन का मोह न किया था
खुशी खुशी चौदह वर्षों का वनवास स्वीकार कर लिया था
तब एक अदद स्थान की चिंता
आप भला क्यों करते?
वैसे भी आप सब जानते हैं
इस कलयुग में जाने कितनों ने
आपको अपनी ही जन्म भूमि से
बेदखल करने का षड्यंत्र रचा
सारे दांवपेंच हथकंडों से प्रपंच रचा
किसी ने आपको महज काल्पनिक कहा
तो किसी ने तुलसी दास का बकवास कहा
पर उन बेशर्मों का सारा प्रयास बेकार गया।
आज जब आपका मंदिर बन रहा है तब भी
कुछ बहुरुपिए कथित सात्विक भक्त बन रहे हैं,
सच हमें ही नहीं आपको भी पता है
ये सब दुनिया की आंखों में धूल झोंक रहे हैं
अपनी अपनी रोटी सुविधा से सेंक रहे हैं।
कुछ जूनूनी आपके लिए अड़े खड़े रहे
आपके घर मंदिर निर्माण के लिए आज भी तने खड़े हैं,
षड्यंत्रकारियों की दाल नहीं गल रही है
उनकी हर चाल निष्फल हो रही है।
बहुरुपियों की नीयत
न कल साफ थी न आज ही साफ है।
न कभी साफ ही होगी।
मगर आपके भक्त आज भी पहले की तरह ही
आपके भरोसे कभी भी नहीं डरे हैं
अपना विश्वास भी नहीं खोते हैं।
परंतु आतताइयों, गिरगिटों, कथित भक्तों का
आज भी कोई भरोसा नहीं है
पर आपके भक्तों को इनसे अब कोई डर नहीं।
मगर प्रभु! मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हूं
शायद अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहा हूं
आप तो सब जानते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम हैं
बीते पलों को ही नहीं आनेवाले पल में भी
जो होने वाला है, वो सब भी जानते हैं।
फिर भी मेरे प्रभु राम जी! मेरे दिल की पुकार है
अपने सारे तंत्र को आज फिर से गतिमान कर दो
अपने अपने काम पर लग जाने का सबको आदेश दे दो
अनीति, अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, व्यभिचार पर
सीधे प्रहार का एक बार में निर्देश दो
अपने शासन सत्ता को फिर स्थापित कर दो।
हे रामजी! आज फिर आपकी जरूरत है
कलयुग में भी रामराज्य स्थापित हो
यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है
आपके भक्त की फरियाद महज इतनी है।
जब तक राम मंदिर बन रहा है
तब तक आप सारा बागडोर अपने हाथ में लेलो
एक बार फिर से अपना रामराज्य ला दो
फिर मजे से अपने मंदिर में चले जाना
बाखुशशी अपना आसन ग्रहण कर लेना
सूकून से जी भरकर भक्तों को दर्शन देना।
हे राम! मेरी पुकार सुनो
मौन छोड़ मैदान में आ जाओ
रामराज्य का हमें भी तो
कम से कम एक बार दर्शन कराओ।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित

Language: Hindi
1 Like · 290 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

"पति" के सिर पर इज्जत की पगड़ी सिर्फ वही " औरत" पहना सकती है
Ranjeet kumar patre
रुख के दुख
रुख के दुख
Santosh kumar Miri
किताब कहीं खो गया
किताब कहीं खो गया
Shweta Soni
पहाड़ की पगडंडी
पहाड़ की पगडंडी
सुशील भारती
सलीके से हवा बहती अगर
सलीके से हवा बहती अगर
Nitu Sah
कब बरसोगे बदरा
कब बरसोगे बदरा
Slok maurya "umang"
जुदाई का प्रयोजन बस बिछड़ना ही नहीं होता,
जुदाई का प्रयोजन बस बिछड़ना ही नहीं होता,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
जैसे पतझड़ आते ही कोयले पेड़ की डालियों को छोड़कर चली जाती ह
जैसे पतझड़ आते ही कोयले पेड़ की डालियों को छोड़कर चली जाती ह
Rj Anand Prajapati
😢कमाल की सिद्ध-वाणी😢
😢कमाल की सिद्ध-वाणी😢
*प्रणय प्रभात*
वंदे मातरम
वंदे मातरम
Deepesh Dwivedi
तेरी चेहरा जब याद आती है तो मन ही मन मैं मुस्कुराने लगता।🥀🌹
तेरी चेहरा जब याद आती है तो मन ही मन मैं मुस्कुराने लगता।🥀🌹
जय लगन कुमार हैप्पी
तत्वहीन जीवन
तत्वहीन जीवन
Shyam Sundar Subramanian
रंगीला बचपन
रंगीला बचपन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
थोड़ा हल्के में
थोड़ा हल्के में
Shekhar Deshmukh
रंगों की बौछार
रंगों की बौछार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
" मनुष्य "
Dr. Kishan tandon kranti
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
Mukesh Kumar Sonkar
One day I'm gonna sit down and congratulate myself, smile, a
One day I'm gonna sit down and congratulate myself, smile, a
पूर्वार्थ
Don't Give Up..
Don't Give Up..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
बेवफा आदमी,बेवफा जिंदगी
बेवफा आदमी,बेवफा जिंदगी
Surinder blackpen
चकाचौंध की दुनियां से सदा डर लगता है मुझे,
चकाचौंध की दुनियां से सदा डर लगता है मुझे,
Ajit Kumar "Karn"
आंसुओं से अपरिचित अगर रह गए।
आंसुओं से अपरिचित अगर रह गए।
Kumar Kalhans
कुंडलिया
कुंडलिया
sushil sarna
संघर्ष (एक युद्ध)
संघर्ष (एक युद्ध)
Vivek saswat Shukla
अब चुप रहतेहै
अब चुप रहतेहै
Seema gupta,Alwar
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
3107.*पूर्णिका*
3107.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चाहतें देख कर लगता था कि बिछड़ना ही नही
चाहतें देख कर लगता था कि बिछड़ना ही नही
इशरत हिदायत ख़ान
बंद कमरे में
बंद कमरे में
Chitra Bisht
Loading...