तेरी आवाज़ क्यूं नम हो गई

आज तेरी आवाज़ क्यूं नम हो गई।
एक ज़ख्म का जैसे मरहम हो गई।
इश्क की रानाईयां हमसे न पूछिये,
ये जिंदगी मेरी तो बरहम हो गई।
इतनी शिद्दत से लिखने लगे शायरी
दीवानी तेरी, मेरी ये कलम हो गयी।
राह में छोड़, मत चल देना मुझे कभी,
साथ रहने की अपनी,कसम हो गई।
पता ही न चला, साथ चलते चलते
कब मैं दिलदार,तेरी सनम हो गई।
सुरिंदर कौर