जय श्री राम.. दोहे
राम हृदय जिसके बसे, ऊँची भरे उड़ान।
संकट-रावण को हरा, जीते हर मैदान।।
पत्थर जल में तैरते, लिखा राम का नाम।
राम नाम बलवान है, करे सिद्ध सब काम।।
राम-राम हर क्षण चले, सुबह कहो या शाम।
सुख में दुख में बोलिये, भला लगे यह नाम।।
लीन भक्ति में जो हुआ, भूल गया जग भार।
कंठ रटा श्री राम को, हुआ गले का हार।।
पंच तत्त्व भगवान में, राम सभी का सार।
भूमि गगन अरु वायु का, अग्नि नीर से प्यार।।
मूल राम है अंश हम, बसे सभी में राम।
भ्रमित सत्य सब भूलकर, पीड़ित आठों याम।।
राम सभी को ख़ुश रखें, मन की यही पुकार।
आज नहीं हरपल कहूँ, महके हर घर द्वार।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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