Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Mar 2023 · 1 min read

अपने और पराए

बुझ गये हैं आशा के दिये अब ,
अंधेरा ही अंधेरा लगने लगे है।

राह तो अब दिखती नहीं ,
पग पग ठोकर खाने लगे हैं।

जिंदगी ने समझा दिये बहुत कुछ अब,
गिर गिर कर संभलने लगे।

बिना ठोकर खाए लोग समझते नहीं।
बिना दुःख के सुख समझ में आता नहीं।

बहुत कुछ सिखा देती है पैसे
इससे अपने हो जाते हैं पराए ,
और पराए हो जाते हैं अपने जैसे।

सुशील कुमार चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार

Loading...