#drarunkumarshastriblogger

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उदासियाँ जब से काबिज किये हैं दिल को ।
ये मुस्कुराने की सोच कर ही डरने लग जाता है
बहुत समझाया इस को कि ये फिजूल बात है ।
मरदूद को समझ हो तो ही तो समझ में आता है
हमारे भीतर जो घट रहा है वही तो कह रहे हैं हम
बनावट कहां से लायें , तिल तिल निबट रहे हैं हम ।।
सकून से जीने कहाँ देता है रोजी रोटी का मसला
पेट पर पट्टी बांध कर जिंदगी को घसीट रहें हैं हम ।।
तुम भी अपने हो और हम भी तुम्हारे ही तो हैं मौला
न जाने किसने बहका दिया ये हिन्दू वो हैं मुसलमां ।।
चलो मस्ज़िद में बैठ कर सुलेह नामा लिखा जाये
और मंदिर में बैठ कर उस पे दस्तख़त किये जायें ।