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16 Mar 2023 · 1 min read

वो टूटता तारा भी कितनों की उम्मीदों का भार लिए खड़ा है,

वो टूटता तारा भी कितनों की उम्मीदों का भार लिए खड़ा है,
जिसे बस दो घड़ी मुस्कुराना है,
फिर अंधेरे की गोद में अपना अस्तित्व गंवाना है।

©®मनीषा मंजरी
Source- यादों की आहटें (coming soon)

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