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6 Mar 2023 · 1 min read

#वचनों की कलियां खिली नहीं

★ #वचनों की कलियां खिली नहीं ★

पसरी हुई चुप की परछाईं
मेरे घर से दर तेरे तक
माना बंदी सच का सूरज
लेकिन कल सवेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . .

स्मृतिवन में पीर धधकती
धीमे धीमे और धीमे
ताप का छौना उछलता बहुत पर
आँखों के काले घेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . .

सांसों का पंछी दूर गगन में
और बहुत भीतर भी है
राम तुम्हारी चाकरी
दिन के उजले अंधेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . .

गणित और विज्ञान की सारी कुंजियाँ
मन के मटमैले थैले में
तन कागद पर भाग्य की रेखा
ठहरती स्वप्नचितेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . .

पूछो तो कोई पूछो दिल से
क्यों चाल हुई तेरी मद्धम
वचनों की कलियाँ खिली नहीं
अभी धूप द्वंद के डेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . .

आ जा कि बहुत अब देर हुई
चिरसंगी रे कहाँ है तू
गातों की बगिया फूल सुनहरे
जनम जनम के फेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . .

राजधरम और पाप पुण्य
कर्म अकर्म और स्नान दान
यह सब खेल हमारे साजन
सबकी सीमा तेरे मेरे तक

माना बंदी सच का सूरज . . . !

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

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